सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग को राज्य में स्थानीय निकायों के लिए लंबित चुनाव कराने का निर्देश दिया है क्योंकि वह अपने संवैधानिक दायित्व को नहीं छोड़ सकता है।
- सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2022 मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस एएम खानविलकर, एएस ओका और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि स्थानीय निकायों का 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद स्थानीय निकाय चुनाव कराना राज्य का संवैधानिक दायित्व है।
- अदालत ने पाया कि 23,000 ग्रामीण स्थानीय निकायों के अलावा, मध्य प्रदेश में 321 शहरी स्थानीय निकायों में 2019-2020 के बाद से मतदान नहीं हुआ था।
- 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के तहत पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिए क्रमशः चुनाव हर पांच साल के बाद और स्थानीय निकाय की अवधि समाप्त होने के छह महीने के भीतर कराना होता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य चुनाव निकाय को फैसले के दो सप्ताह के भीतर चुनावों की अधिसूचना जरी करना होगा ।
- अदालत ने यह भी कहा कि स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए तब तक कोई आरक्षण नहीं होगा जब तक कि राज्य विलास कृष्णराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह के आरक्षण के लिए निर्धारित ट्रिपल टेस्ट का पालन नहीं करता है।
- गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी कोटा निर्धारित करने में राज्यों के लिए ट्रिपल टेस्ट बेंचमार्क प्रदान किया था।
ये तीन बेंचमार्क हैं:
1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थों की समकालीन अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना;
2) आयोग की सिफारिशों के आधार पर, स्थानीय निकायों के प्रावधान के लिए आवश्यक आरक्षण का अनुपात निर्दिष्ट करना ।
3) किसी भी स्थिति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीट, कुल सीटोंकी संख्या के 50% से अधिक नहीं होगा।
- 73वें और 74वें संविधान संशोधन 1992 के अनुसार राज्य सरकार क्रमशः पंचायतों और नगर पालिकाओं में ओबीसी के लिए 27% सीटों का आरक्षण प्रदान कर सकती है।
- ·स्थानीय निकाय चुनाव संबंधित राज्य चुनाव आयोग द्वारा आयोजित किए जाते हैं, न कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री: शिवराज सिंह चौहान
मध्य प्रदेश के राज्यपाल: मंगूभाई पटेल
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