सुप्रीम कोर्ट ने अपने 11 मई 2022 के आदेश में , भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए के तहत 152 साल पुराने देशद्रोह कानून को तब तक के लिए रोक लगा दिया है जब तक भारत सरकार कानून के प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती और कोर्ट को आगाह करती है ।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश एस.जी.वोम्बत्केरे बनाम भारत संघ 2021 मामले में दिया था जिसमें देशद्रोह से निपटने वाली IPC की धारा 124 A की संवैधानिक वैधता को अदालत में चुनौती दी गई थी।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा कानून की इस धारा के तहत तब तक कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा जब तक केंद्र सरकार कानून के प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती।
- देशद्रोह के लंबित मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद लोग अदालत जा सकते है और जमानत मांग सकते हैं।
- सरकार पर देश में असंतोष को शांत करने के लिए विवादास्पद राजद्रोह कानून का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहा है ।
- 2014 और 2019 के बीच विवादास्पद औपनिवेशिक युग के देशद्रोह कानून के तहत देश में कुल 326 मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें सिर्फ छह लोगों को दोषी ठहराया गया था।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 के बीच, देशद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए और सबसे ज्यादा 54 मामले असम में दर्ज किए गए।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)1860 की धारा 124 क
भारतीय दंड संहिता की धारा 124 क अनुसार देशद्रोह तब किया जाता है जब , "बोले या लिखे गए शब्दों या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रस्तुति द्वारा, जो कोई भी भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, या तीन वर्ष तक की कैद और ज़ुर्माना अथवा सभी से दंडित किया जाएगा।"
कानून के तहत अधिकतम सजा आजीवन कारावास है।
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